Wednesday, July 30, 2025

भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम्

संगीत............................१२३
भजे व्रजै कमण्डनं समस्त पाप खण्डनं
स्वभक्त चित्त रंजनं सदैव नन्द नन्दनम्  
भजे व्रजै कमण्डनं समस्त पाप खण्डनं
स्वभक्त चित्त रंजनं सदैव नन्द नन्दनम्  
सुपिच्छ गुच्छ मस्तकं सुनाद वेणु हस्तकं
अनंग रंग सागरं
नमामि कृष्ण नागरम्
नमामि कृष्ण नागरम्
 
संगीत............................१२३
मनोज गर्व मोचनं विशाल लोल लोचनं
विधूत गोप शोचनं नमामि पद्म लोचनम्
मनोज गर्व मोचनं विशाल लोल लोचनं
विधूत गोप शोचनं नमामि पद्म लोचनम्
करार विन्द भूधरं स्मिताव लोक सुन्दरं
महेन्द्र मान दारणं
नमामि कृष्णा वारणम्
नमामि कृष्णा वारणम्
 
संगीत............................१२३
कदम्ब सून कुण्डलं सुचारु गण्ड मण्डलं
व्रजांग नैक वल्लभं नमामि कृष्ण दुर्लभम्
कदम्ब सून कुण्डलं सुचारु गण्ड मण्डलं
व्रजांग नैक वल्लभं नमामि कृष्ण दुर्लभम्
 
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया
युतं सुखै कदायकं
नमामि गोप नायकम्
नमामि गोप नायकम्
 
संगीत............................१२३
सदैव पाद पंकजं मदीय मानसे निजं
दधान मुक्त मालकं नमामि नन्द बालकम्
सदैव पाद पंकजं मदीय मानसे निजं  
दधान मुक्त मालकं नमामि नन्द बालकम्
समस्त दोष शोषणं समस्त लोक पोषणं
समस्त गोप मानसं
नमामि नन्द लालसम्
नमामि नन्द लालसम्
 
संगीत............................१२३
भुवो भरा वतारकं भवाब्धि कर्ण धारकं
यशोमती किशोरकं नमामि चित्त चोरकम्
भुवो भरा वतारकं भवाब्धि कर्ण धारकं
यशोमती किशोरकं नमामि चित्त चोरकम्
दृगन्त कान्त भंगिनं सदा सदालि संगिनं
दिने दिने नवं नवं
नमामि नन्द सम्भवम्
नमामि नन्द सम्भवम्
 
संगीत............................१२३
गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं
सुर द्विषन्नि कन्दनं नमामि गोप नन्दनम्
गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं
सुर द्विषन्नि कन्दनं नमामि गोप नन्दनम्
नवीन गोप नागरं नवीन केलि लम्पटं
नमामि मेघ सुन्दरं
तडित्प्रभाल सत्पटम्
तडित्प्रभाल सत्पटम्
 
संगीत............................१२३
समस्त गोप नन्दनं हृदम्बुजै कमोदनं
नमामि कुंज मध्यगं प्रसन्न भानुशोभनम्
समस्त गोप नन्दनं हृदम्बुजै कमोदनं
नमामि कुंज मध्यगं प्रसन्न भानुशोभनम्
निकाम काम दायकं दृगन्त चारु सायकं
रसाल वेणु गायकं
नमामि कुंजनायकम्
नमामि कुंजनायकम्
2.0
संगीत............................१२३
विदग्ध गोपि कामनो मनोज्ञ तल्पशायिनं
नमामि कुंज कानने प्रव्रद्ध वन्हि पायिनम्
विदग्ध गोपि कामनो मनोज्ञ तल्पशायिनं
नमामि कुंज कानने प्रव्रद्ध वन्हि पायिनम्
किशोर कान्ति रंजितं दृअगं जनं सुशोभितं
गजेन्द्र मोक्ष कारिणं  
नमामि श्रीविहारिणम्
नमामि श्रीविहारिणम्
 
संगीत............................१२३
यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम्
यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम्
प्रमाणि काष्ट कद्वयं जपत्य धीत्य यः पुमान
भवेत्स नन्द नन्दने
भवे भवे सुभक्तिमान
भवे भवे सुभक्तिमान
भवे भवे सुभक्तिमान
 
 
 
 
 
 
 
SONG LINK:
https://www.youtube.com/watch?v=ruAjzg4odq0
 
 
 



















 
 
 
 
।। श्री कृष्णाष्टकम् ।।
भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं
स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम्  
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं
अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम्
अर्थ:- " मैं भजता हूं उन्हें जो व्रजमण्डल के आभूषण हैं और पापराशी को समाप्त करते हैं और सदा अपने भक्तों के चित्त में रञ्जन करते हैं , जो नन्द बाबा के सुपुत्र हैं । जो मोरपंखगुच्छ को मस्तक पर धारण करते हैं तथा मधुर रागस्वर प्रदायी बांसुरी जिनके हाथ में है , उन प्रेमकला के सागर भगवान कृष्ण को नमस्कार है ।
 
मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम्
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं
महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णावारणम्
अर्थ:- " जिनके आकर्षण के आगे कामदेव का गर्व चूर- चूर होता है , जिनके नेत्र विशाल सुंदर हैं , जो गोपांगनाओं को शोकमुक्त करते हैं उन कमलनयन को प्रणाम है । जिन्होंने अपने कोमल हाथ से पर्वत उठाया था , जो मधुर-सुंदरहास युक्त हैं , जिन्होंने देवराज इन्द्र के दर्प का दलन किया और जो गजराज समान हैं उन श्रीकृष्ण को प्रणाम है ।
 
कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं
व्रजांगनैकवल्लभं नमामि कृष्णदुर्लभम्
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया
युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम्
अर्थ:- " जो कदम्ब पुष्पों को कर्णकुण्डल रुप में धारण करते हैं , जिनके गाल सुचारु सुंदर हैं , जो व्रजगोपियों के नायक हैं , जो दुर्लभ हैं उन श्रीकृष्ण को प्रणाम है । श्री यशोदा जी , गोपजनों और नन्द बाबा को परमानन्द देने वाले गोपनायक श्री कृष्ण को प्रणाम है ।
 
सदैव पादपंकजं मदीय मानसे निजं
दधानमुक्तमालकं नमामि नन्दबालकम्
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं
समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम्
अर्थ:- " जिनके पादपंकज सदा मन में निवास करते हैं , जिनके घुंघराले केश हैं ,जो वैजयंती की चमकदार माला धारण करते हैं उन नन्दबाबा के पुत्र को प्रणाम है । जो समस्त दोषों का शमन करते हैं तथा समस्त लोकों के पालनहार हैं जो गोपजनों के मन में बसे हैं और नन्द बाबा की लालसा हैं उन्हें प्रणाम है ।
 
भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं
यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम्
दृगन्तकान्तभंगिनं सदा सदालिसंगिनं
दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसम्भवम्
अर्थ:- " मैं प्रणाम करता हूं उन श्री कृष्ण को जो पापअंत कर धरा का भार उतारते हैं , जो दु:ख रुपी संसार सागर से पार लगाते हैं , जो यशोदा जी के किशोर हैं और जो चित्त को चुरा लिया करते हैं । जिनके नेत्र अत्यन्त सुंदर हैं जो सदा सज्जनों से घिरे रहते हैं और वन्दित होते हैं और जो नित नये प्रतिदिन नवीन औेर नूतन प्रतीत होते हैं ।
 
गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं
सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम्
नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलम्पटं
नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम्
अर्थ :- " नमस्कार है उन गोपनन्दन को जो गुणाकर-सुखाकर-कृपाकर हैं जिनकी कृपा परम है तथा जो देवों के शत्रुओं का नाश कर देते हैं । जो नित नवीन लम्पट लीलाऐं करते हैं और जो घनमेघ समान सुंदर हैं तथा जो बिजली के समान चमकदार पीताम्बर धारण करते हैं ।
 
समस्तगोपनन्दनं हृदम्बुजैकमोदनं
नमामि कुंजमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनम्
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं
रसालवेणुगायकं नमामि कुंजनायकम्
अर्थ:- " जिनके द्वारा समस्त गोपजन प्रमुदित और प्रसन्न रहते हैं । जो कुञ्ज के मध्य में रहकर उसी प्रकार सभी के मन को खिलाते हैं जैसे सूर्य की उपस्थिति से कमल खिला करते हैं । प्रणाम उन कुंज नायक को जो भक्तों के मनोरथों को पूर्ण करते हैं । जिनके कृपाकटाक्ष दु:खों का नाश करते हैं और जो बांसुरी पर मधुर धुन और राग छेड़ते हैं ।
 
विदग्धगोपिकामनोमनोज्ञतल्पशायिनं
नमामि कुंजकानने प्रव्रद्धवन्हिपायिनम्
किशोरकान्तिरंजितं दृअगंजनं सुशोभितं
गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम्
अर्थ :- " जो विवेकवान गोपियों की धारणा रुपी शय्या पर सदा विश्राम करते हैं , तथा जिन्होंने वनअग्नि का पान किया था गोपजनों को बचाने हेतु । मैं प्रणाम करता हूं उन श्री कृष्ण को जो किशोरकान्ति से सम्पन्न हैं तथा जिनके नेत्र अञ्जन ( काजल ) से सुशोभित हैं । जिन्होंने गजेन्द्र को कालरुप ग्राह से मुक्त करा मोक्ष प्रदान किया और जो श्री लक्ष्मी जी के स्वामी और नाथ हैं उन्हें नमस्कार है ।
 
यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम्
प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान
भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान
अर्थ:- " हे कृष्ण ऐसी कृपा करें की मैं सद‍ा आपकी लीला , कथा , महिमा का वर्णन करत‍ा रहूं प्रत्येक स्थिति में । जो भी इन अष्टकाद्वय का पाठ करता रहता है वह कृष्ण भक्ति से जन्मजन्मान्तर तक सम्पन्न रहता है । " इति श्रीमज्जगदगुरु आदि शंकराचार्य भगवत: कृतो श्री कृष्णाष्टकं सम्पूर्णम् । श्री कृष्णस्टकम को श्री कृष्णा कृपा कटाक्ष स्तोत्र भी कहा जाता है.


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कैसा चक्कर चलाया रे श्याम तेरी ऊँगली ने

संगीत.....................१२३ कैसा चक्कर चलाया रे श्याम तेरी ऊँगली ने कैसा चक्कर चलाया रे श्याम तेरी ऊँगली ने कैसा चक्कर चलाया रे श्याम...